क्या बना रहे हो – मकान या घर?
बहुत दिन हो गया है आप सब से कुछ बातें साझा करते हुए !
मैं लिखने का तो रोज एक लेख लिख सकता हूं लेकिन समय का अभाव के कारण ज्यादा लिख नहीं पाता |
इन दिनों कुछ किताब पर भी मेरा काम चल रहा है इसलिए थोड़ा ज्यादा ही व्यस्त हो, आजकल कुछ काम बढ़ गया है
खैर, जब-जब कुछ ऐसी चीजें देखता हूं तो कलम अपने आप उठ ही जाता है |
सुबह दूध लेने के लिए पास के किराने दुकान जा रहा था, रास्ते में 2-4 मकान पर नजर पड़ी, कुछ तो नव निर्मित मकाने थी और कुछ फिर से तोड़कर नया बनाया जा रहा था – जिसे आजकल इंटीरियर डिजाइनिंग का नाम दिया जाता है
एक जगह तो पूरा परिवार मकान बनाने में लगा हुआ था, सबको देखा कि कुछ ना कुछ सुझाव साझा कर रहा है
यहां पर एक प्रश्न के साथ आपको रोकना चाहूंगा
प्रश्न यह है कि क्या आज के दौर में बाकी में घर बनाया जा रहा है? मैं उस घर की बात कर रहा हूं जिस घर में पूरा परिवार एक साथ सौहार्द भावना से रहते हैं
मैं किसी के मकान बनाने या उसे नए ढंग से सजाने पर आपत्ति दर्ज नहीं कर रहा, पर थोड़ी देर बाद जब आप पूरा लेख पढ़ लेंगे तो मेरी बात समझ जाएँगे जिस पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहा हूं
जब मैं चुपचाप दुकान जा रहा था तो मेरे मन में कई प्रश्न था
लौटा तो देखा कि वहां पर भीड़ जमी हुई थी, पास जाकर माजरा समझने की कोशिश की तो पता चला कि एक दीवार के कारण पड़ोसी आपस में भिड़ गए
यहां पर एक दीवार की बात नहीं है, आज कल लोग 1 – 2 फीट की जमीन के कारण विवाद शुरू कर देते हैं, विवाद दीवार, जमीन या संपत्ति की नहीं होती है यह तो सोच और ज्ञान के अभाव के कारण उत्पन्न होती है
कभी-कभी विवाद इतना बढ़ जाता है लड़ाई झगड़ा हो जाता है, पर जो खुद को समझदार कहते हैं बो कोर्ट मे मामला सुलझाने की कोशिश करते हैं
आज भी कोर्ट में सबसे ज्यादा जमीन का विवाद का केस मिलता है
मैं यहां पर सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि
कैसा घर बनाया जा रहा है?
कैसा समाज बन रहा?
जहां लोग एक दूसरे को समझने को तैयार नहीं है, एक दूसरे को सुनने को तैयार नहीं है
यहां मुझे तो एक ही बात समझ आती हैं कि घर में कितना भी टाइल्स और मार्बल लगा लीजिए घर के सुंदरता तो वहां वहां रहने वाले लोगों के सोच पर निर्भर करता है, घर के लोगों के बीच में अगर एक दूसरे के प्रति सम्मान प्रेम अथवा सद्भाव नहीं है तो वह घर नहीं कहलाता
मेरे गांव में सबसे अच्छा घर जिस मनुष्य का है उसके यहां शायद ही कोई जाता होगा, अक्सर दिन में भी ताला लगा देखता हूं वहां जो लोग रहते हैं उनका बाकी दुनिया से ज्यादा ताल-मेल नहीं रहता है
गांव में तो अभी भी लोग एक दूसरे के दुख-सुख में घर आना जाना करते हैं, शहर में तो अलग ही खेल चल रहा है, 2 बीएचके के फ्लैट में 4 लोग साथ में रहते हुए मोबाइल पर अपनी अलग अलग दुनिया चला रहे हैं
आज के दौर में घर बनता ही कहां है, पिता अगर घर बना रहा है तो कोई प्रमाण नहीं है कि उसका बेटा उसके साथ रहेगा, बेटा अगर घर बना रहा है तो घर में मां-बाप को जगह मिलेगा कि नहीं यह भी किसी को पता नहीं होता
घर तो आजकल पत्नी के नाम पर ही रजिस्ट्री होती है, मां बाप का नाम तो पेपर से गायब ही हो रहा है
फिर भी लोग कहते हैं कि घर बना रहा हूं
मेरा इशारा शायद आप लोग समझ गए होंगे आगे से अगर कोई बोले कि बहुत घर बना रहा है तो उससे यह यह प्रश्न जरूर पूछना
इसकी समाज की जरूरत है
लेख अगर जो पसंद आया होगा तो इसे शेयर करें और आगे भी इसी तरह के सामाजिक मुद्दों के साथ आता रहूंगा
जय हिंद
Salute to your thinking.