गधे की कहानी से सीखे – गधा नहीं बने
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज के बीच में रहना होता है
समाज में रह रहे लोगों के बातों का उस पर सीधा प्रभाव पड़ता है, लेकिन जब वही बात उसको निराशा-अवसाद की ओर ले जाता है तो इससे बुरा उसके लिए कुछ भी नहीं है
हमारे देश में ज्ञान चंद्र की कमी नहीं है, हर एक घर, मोहल्ला, नुक्कड़ पर ऐसे लोग आपको मिलेंगे जो बिना अनुभव के आप को ज्ञान देने की कोशिश करेंगे
वे लोग सीधे तौर पर आपको अपने पथ से भटकाने की कोशिश करेंगे, ऐसे लोग से सावधान रहने की जरूरत है
याद रहे, आप से बेहतर आपके बारे में और कोई बता ही नहीं सकता अपने आप पर विश्वास रखिए
यह कहानी एक बाप-बेटे और गधे की है, कैसे समाज के लोग अपनी बातों से बाप-बेटे के दिमाग से खेल रहे हैं इस कहानी में साफ तौर पर झलकता है
इस कहानी को ध्यान से समझा दे तो काफी कुछ सीखने को मिल सकता है
एक बार एक बाप और उसका बेटा गधा खरीदने के लिए बाजार गये। दोनों को एक गधा पसंद आया जो देखने में थोड़ा सा कमजोर था। दोनों बाप-बेटे गधे को खरीदकर घर की ओर चल दिए। बेटे ने पिता को गधे पर बैठा दिया और खुद पैदल चल रहा था। वे दोनों थोड़ी दूर ही निकले थे कि तभी उन्हें रास्ते कुछ लोग मिले।
उनमें से एक ने कहा- देखो तो, यह कैसा पिता है। खुद तो गधे पर सवार है, और अपने पुत्र को पैदल चला रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता को शर्म महशूश हुई, वह गधे से नीचे उतर गया, और पुत्र को बैठा दिया। कुछ दूर आगे जाने पर कुछ महिलाएं मिलीं।
उन्होंने कहा- कैसा बेटा है! बूढ़ा बाप पैदल चल रहा है और खुद मजे से सवारी कर रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र, दोनों, पैदल चलने लगे।
थोड़ा आगे जाने पर कुछ और व्यक्ति मिले। उन्होंने कहा – कितने मूर्ख हैं दोनों, एक हट्टा-कट्टा गधा साथ में है, फिर भी सवारी करने की बजाए दोनों पैदल चल रहे हैं।
उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र, दोनों गधे पर बैठ गए। थोड़ा आगे गए तो कुछ और व्यक्ति मिले। उन्होंने कहा- दोनों कितने निर्दयी हैं।
दोनों पहलवान हो रहे हैं और एक पतले-दुबले गधे की सवारी कर रहे हैं। ऐसा लगता है, जैसे ये इसे मारना चाहते हों। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र गधे से उतर गए और दोनों ने मिलकर गधे को उठा लिया।
जब वे बाजार पहुंचे तो वहां पर लोग उन्हें देखकर हंसने लगे। सभी कहने लगे- कितने मूर्ख हैं दोनों, कहां तो इन्हें गधे की सवारी करनी चाहिए थी, और कहां ये दोनों गधे की सवारी बने हुए हैं !
नए समय की कथा अब यहां से शुरू होती है- पिता-पुत्र ने विचार किया, बजाए लोगों की बातों पर ध्यान देने के इस गधे से ही पूछा जाए, इसका क्या विचार है ?
तब गधे ने उत्तर दिया कि बड़े मजे में हूं, क्योंकि जब मालिक या मेरा उपयोग करने वाले भ्रम में हों, दूसरों के बहकावे में आकर जब अपने मूल उद्देश्य से भटक रहे हों, तो लाभ मुझे ही मिलता है।
दोस्तों, बात चली रही है तो मैं भी अपने जीवन के कुछ अनुभव आपके साथ शेयर करना चाहता हूं
मैं जब अपने जीवन को अपने स्तर से जीने की संकल्प ले लिया तो मुझे भी बहुत सारा बात कहा गया लेकिन मैं एक ही चीज में विश्वास रखता हूं कि ईश्वर ने हमे दो कान इसलिए दिया है कि एक कान से बुरी बातों को सुनो और दूसरे कान से निकाल दो उसको अपने जीवन में प्रवेश होने नहीं दो
और शायद आज इसी का परिणाम है कि आज मैं एक सुखी और संतुष्ट जीवन जी रहा हूं