विपत्ति में ही अपनों का पता चलता है
नमस्कार दोस्तों, आशा करता हूं कि आपका और आपके परिवार का स्वास्थ्य ठीक होगा
इन दिनों कुछ ज्यादा ही व्यस्त हूं, इसलिए लेख कम ही लिख पा रहा हूं, लेकिन अच्छी खबर यह है कि अब मेरे अनुभवों का संग्रह ‘किताब’ के रूप में जल्दी आने वाली है
लेकिन जैसा कि आप लोग सभी जानते हैं कि जब-जब समाज दिशाहीन होते दिखता है तो मैं कलम उठा ही लेता हूं
इन दिनों फोन कुछ ज्यादा ही बज रहा है, कोरोनावायरस के कारण जो अव्यवस्था उत्पन्न हुआ है, उससे बहुत लोगों का जीवन प्रभावित होता दिख रहा है
मैं कोरोना के संदर्भ में एक लेख पहले भी लिख चुका हूं आप इस लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ सकते हैं
मैं एक सकारात्मक सोच के लिए जाना जाता हूं इसलिए लोग अक्सर मुझे फोन करके अपने हालात विचार और स्थिति पर चर्चा करते हैं
और मेरी भी भरपूर कोशिश रहती है कि मैं अपने सकारात्मक सोच से उनका मनोबल बढ़ा सकूं
क्योंकि मेरा यह मानना है कि यही सकारात्मक सोच लोगों को ‘अर्श से फर्श’ तक पहुंचा सकता है और इसका जीता जागता उदाहरण ‘मैं खुद हूं’
इसमें कोई संदेह नहीं कि करोना एक महामारी के रूप में लोगों के जीवन पर असर डाल रहा है
कई लोगों का व्यापार ठप पड़ गया है, कई लोगों की नौकरी चली गई है, कई लोगों की पढ़ाई सुचारू रूप से नहीं चल रही और कई लोगों का जीवन ही अस्त-व्यस्त हो चुका है
यह बहुत सारे लोगों के लिए मुश्किल का समय है
अब इन सब के बीच लोगों में नकारात्मक विचार, आपस में मतभेद, घरेलू हिंसा बढ़ते देखा जा रहा है
असल में समस्या यह है कि लोग सिर्फ चर्चा कर रहे हैं, समाधान कोई नहीं बता रहा है
जहां देखो वहीं प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम बताई जा रही है सलूशन क्या होगा इस पर कोई भी बात नहीं कर रहा है
टीवी या सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े हेडलाइन के द्वारा लोगों को डराया जा रहा है, डिबेट्स में जोर-जोर से चीख-चीख कर सिर्फ समस्या का उजागर कर रहे, लेकिन उसका समाधान अंत तक नहीं निकाल पाते है
नौकरी जाने पर लोगों को दुहाई दी जा रही है लेकिन उसको दोबारा कैसे फिर से काम पर लगाना है इस पर बात नहीं हो रहा है
बिजनेस ठप हो जाने पर नसीहत तो दी जा रही है लेकिन फिर से उसे कैसे खड़ा किया जाए, इस बारे में कोई भी सुझाव नहीं दिया जा रहा है
घर में बच्चों को पढ़ाई न करने पर सिर्फ कोसा जा रहा है लेकिन उनका ध्यान पढाई पर कैसे लगाना है इस पर कोई बात नहीं कर रहा है
कुछ महानुभाव तो इसके चरम सीमा पर हैं, उनकी खुद की स्थिति बिल्कुल डामाडोल सी है, लेकिन वह दूसरे पर विचार रखने में जरा भी संकोच नहीं कर रहे हैं और समाज में नकारात्मक बात करके समाज को दूषित कर रहे हैं
यहां पर सोचने की जरूरत है, बात करने की जरूरत है
बात कहने की जरूरत नहीं है
इस समय तो एक दूसरे का साथ देने की जरूरत है, एक दूसरे को सकारात्मक सोच से फिर से खड़ा करने की जरूरत है
क्योंकि मेरा सिर्फ एक ही सवाल है, कि क्या करोना इन सब के द्वारा लाया गया है, क्या यह परिस्थिति इन सब के द्वारा उत्पन्न किया गया है
क्या इसके पीछे ये लोग जिम्मेदार हैं
यह तो आकस्मिक हुआ इसमें कहीं किसी की गलती नहीं है
और हमें इसे चुनौती की तरह लेना होगा और पूरे जिम्मेदारी से साथ मिलकर डटकर सामना करना होगा
याद रहे, आप के नकारात्मक बातों से इन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है
इसलिए साथ दो
साथ दो सोच में
साथ दो हालात में
साथ दो फिर से खड़ा होने में
विपत्ति में ही अपनों का पता चलता है
उम्मीद करता हूं मेरे बातों का असर पड़ेगा
अगर इसके बाद भी किसी के घर में लोग नहीं मान रहे हैं, तो गूगल से मेरा नंबर उठाओ, उनको मेरे से बात कराओ, मैं उनको समझाऊंगा
आगे भी इसी तरह सकारात्मक विचार के साथ आपके बीच में आते रहूंगा
अभी के लिए इतना ही
जय हिंद
Waah..
Dil ko chu gya