पूछता है रावण?
आज दशहरा हैं, असत्य पर सत्य का जीत का दिन, पाप पर पुण्य का विजय का दिन, रावण पर श्री राम द्वारा दिए दंड का दिन, अश्रुरों पर मां दुर्गा के प्रहार का दिन
पर्व मुझे खासतौर पर इसलिए पसंद है क्योंकि मुझे काम करने का अधिक समय मिल जाता है और फिर मैं इस तरह का लेख भी लिख पाता हूं
सुबह से शाम तक तो पूजा पाठ में ही बीता, शाम को सो गया था और रात में रावण दहन देखने को निकला
कहा जाता है भारत ‘अनेकता में एकता’ का देश है, आजकल धर्म, रीति-रिवाज और पूजा पाठ की भिन्नता देखने पर यह कथन संकोच में डाल देता हैं
कहीं रावण शाम को ही निपटा दिए जा रहे हैं तो कहीं डीजे और मौज मस्ती के कार्यक्रम के चक्कर में देर रात तक रावण का मजाक बनाया जाता है
यह सब को देखकर मेरे मन में कई सवाल उठने लगते हैं
हम मानव जाति अपने सहूलियत और स्वार्थ के चक्कर में सब कुछ ताखा पर रखते जा रहे हैं
मैं ज्यादा घूमने फिरने का शौक नहीं रखता हूं इसलिए पास के एक पार्क में रावण दहन देखने चला गया
जनता दशहरे के मेले का भरपूर आनंद उठा रहा था
मेरी नजर अचानक कोने में खड़े रावण पर पड़ी
जब नजदीक जाकर उन्हें देखने लगा तो ऐसा लगा कि रावण मुझसे कुछ पूछना चाहते हैं
(जाते ही मैंने रावण को प्रणाम किया)
यह हमारी हिंदू संस्कृति के तहत आता है और रावण का जब बध हुआ तो राम ने भी लक्ष्मण को रावण के पैर के पास खड़े होने का निर्देश दिया था क्योंकि रावण अपने आप में एक प्रचंड विद्वान था, राम भगवान चाहते थे कि लक्ष्मण में उनके सद्गुण आए
किसी भी व्यक्ति में अगर हजार अबगुण हो और एक भी सद्गुण हो तो हमें उसे अपनाना चाहिए
(मेरे और रावण के बीच में हुए संवाद के कुछ अंश)
रावण – क्या नाम है?
मैं – अभय रंजन
रावण – क्या करने आए हो?
मैं – आपको जलते हुए देखने आया हूं
रावन – मुझे क्यों जलाते हो?
मैं – आपने गलत काम किया, दूसरे की पत्नी को जबरदस्ती उठाकर ले आए, उसे बंधक बनाकर अपनी पत्नी बनाने की चेष्टा रखी, जो कि गलत है |
रावण – अच्छा, मैंने तो गलती की जिसकी सजा मुझे ईश्वर के हाथ मिली, भगवान राम ने मेरा संघार किया था, तुम लोग जो आज तमाशा बना कर पर्व का नाम दे रहे हो – इसका क्या?
मैं – मैं कुछ समझा नहीं
रावन – तुम लोग असत्य पर सत्य का जीत बनाकर दशहरा मनाते हो – क्या तुम लोग सत्य की राह पर चल रहे हो ?
क्या तुम लोग आजीवन अच्छाई को अपना कर रखोगे ?
आज मुझे जला कर फिर वही “मुंह में राम बगल में छुरी” का हिसाब-किताब शुरू हो जाएगा
मैं तो फिर भी कई मामलों में सही था, सीता को जब उठा कर लाया तो उनको अलग रहने स्वतंत्रा दी, जब तक वह मन से मुझे स्वीकार न कर ले
मानव जाति में आज भी कई ऐसी कुरीतियां खुलेयाम हो रही हैं
आज जब तुम लोग मुझे जलाते हो तो मुझे दर्द नहीं होता क्योंकि मैं अपने आप से अभागा तुम लोगों को समझता हूं
मैंने तो अपनी बहन की बेइज्जती का बदला लिया जिसके चलते मेरे से गलत कदम उठ गए और जिसकी मुझे बाद में सजा भी मिली
मेरे अंदर राक्षस प्रवृत्ति मदिरापान और मांसाहार करने से आई पर तुम लोग भी आज कुछ कम नहीं हो
9 दिन पूजा पाठ करके दसवें दिन किसी निर्दोष पशु की हत्या करके उसे खाते हो इससे बड़ा अधर्म और क्या होगा
अंत में यही कहूंगा
हो सके तो मेरे साथ-साथ अपने अंदर के अबगुणो को भी जला कर आना और अगली बार जब जलाने आना तो अपने आप में सुधार करके आना
मैं रावण के बातों को सुनकर निशब्द था, अब मेरी इच्छा उन्हें जलता हुआ देखने को नहीं बची, मैं घर बापस आ गया
वाकई में समाज को रावण के द्वारा कहे शब्दों पर अमल करना चाहिए, हमारे अंदर भी कई रावण छुपे हुए हैं, पहले उन्हें जलाना चाहिए
आशा करता हूं लेख पसंद आया होगा
लाइक शेयर और कमेंट की कोई जरुरत नहीं, बात समझ आ गयी हो तो काफी हैं
आपका अपना
अभय रंजन
Good thoughts, SIR ji.
Apahran k bad bhi
Sita mehfooz thi
Kis kadar sharafat thi
Us dor k ravan me bhi.
-Jalane se phle raam banna hogaa.
Sahi me samaj ke Longo ko apni soch badalne ki jarurat hai