क्यों मनाते है हम त्यौहार? पर्व की अहमियत को समझे
कहां जाता है भारत त्योहारों का देश है, भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां अलग-अलग जाति, धर्म के लोग अलग-अलग त्यौहार एक साथ मनाते हैं और यह हमारी अनेकता में एकता को सिद्ध करता है |
पर जब मैं दिमाग पर थोड़ा सा जोड़ देता हूं और त्योहारों की पारदर्शिता को जानने की कोशिश करता हूं तो मेरे मन में कई सारे सवाल एक साथ जन्म लेती है |
जैसे कि क्यों मनाते हैं हम त्यौहार ?
क्या है इसकी अहमियत ?
क्या हम त्यौहार की महत्वता को समझ पा रहे हैं ?
आजकल त्यौहार महज़ एक होड़ की तरह मनाई जा रही है, मैं यह साफ कर दूं कि मेरा यह पोस्ट ना तो त्यौहार या उसके मनाने के प्रति कोई आपत्ति दर्ज कर रहा है, यह तो बस त्यौहार के अहमियत को समझाने का एक छोटा सा प्रयास है |
हमारे देश में त्यौहार तो खुशी मनाने का दूसरा नाम है, लोग बहुत हर्षोल्लास के साथ त्यौहार मनाते हैं जो की बहुत अच्छी बात है, लेकिन त्यौहार की सत्यता को जानना भी उतना ही जरूरी है जितना त्योहार मनाना |
जैसे की होली क्यों मनाई जाती है ? दीपावली क्यों मनाई जाती है ? करवा चौथ का क्या महत्व है ? मकर सक्रांति, लोहड़ी, पोंगल क्यों मनाई जाती है ?
यह सारे प्रश्न आज के नवयुवक को समझाना बेहद जरूरी सा लगता है क्योंकि लोग त्योहार तो याद रख रहे हैं लेकिन उसकी अहमियत को भूलते जा रहे हैं |
त्यौहार सिर्फ भावना को उजागर करने का माध्यम नहीं है, त्यौहार हमें वह सीख देता है जिससे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं – जैसे उदाहरण देता हूं कि दशहरा असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देता है, हमें कभी भी असत्य की राह नहीं पकड़ना चाहिए लेकिन कितने लोग इसको समझते हैं और इस को मानकर आज अपना जीवन जी रहे हैं |
हम तो बस त्यौहार मना लेते हैं और फिर उसके अहमियत, उसके ज्ञान को बिना जाने समझे बस खुशी मना कर पर्वों का खात्मा कर लेते है |
क्यों करवा चौथ सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गया क्योंकि गाँव के लोग शाहरुख खान और करण जौहर की पिक्चर नहीं नही देखते और इसको कोई भी झुठला नहीं सकता कि करवा चौथ को प्रसिद्धि इन्हीं के फिल्मों के कारण मिला है |
एक बात और मैं जोड़ना चाहूंगा कि हम लोग पर्व-त्यौहार भी अपनी सुविधा के अनुसार मनाने लगे, हम लोग क्यों नहीं “बूढ़े मां बाप” के लिए कोई पर्व मनाते | हमारा समाज हमें क्यों इनके लिए अभी तक कोई ऐसा पर्व नहीं दिया |
और हम कहते हैं कि हमारी संस्कृति सबसे प्राचीन और सबसे अच्छी है | अरे हम से तो अच्छा वह फॉरेनर्स है जो फादर्स डे, मदर्स डे मनाते तो हैं |
हमारा पर्व तो सिर्फ ‘पति पत्नी और बच्चों’ के बीच में ही सिमट कर रह गया, पर्व प्रेम को बढ़ाता है, इसके ज़रिए लोग एक दूसरे के नजदीक आता है, तो अगर पति-पत्नी के लिए या पत्नी-पति के लिए पर्व करेगा तो दोनों के बीच में असमंजस और प्रेम बढ़ेगा |
लेकिन हमें यह बात भी समझना चाहिए कि हमारी सदियों से चलती आ रही प्रथा में बदलाव की जरूरत है, हमें अगर आपस में प्रेम भाव बढ़ाना है तो वह हमें अन्य लोगों के साथ पर्व मनाना चाहिए, आज जो “मियां बीवी और बच्चे समेत” का धारणा समाज में बन गया है इससे बाहर निकलना ही होगा |
हमें हमारी सोच से लेकर हमारी विचारधारा पर काम करना होगा तब तभी हम एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण कर पाएंगे और हम अपनी जीवन से दूसरे को भी प्रभावित कर पाएंगे नहीं तो जैसा चल रहा है वैसा तो चलता ही रहेगा |
आगे और भी सामाजिक मुद्दे को उठाता रहूंगा ब्लॉक के साथ जुड़े रहे |
धन्यवाद
Jbab nhi h jnab lekin hum jode bhi nhi ja skte or tode bhi nhi skte esliye jise jaise khusi mile bo sours hoga khusi ka rasta kuchh bhi ho ak baigyanik ko sodh me sflta ke bad bahut khusi milti but festival mayne nhi rkhta to smjhe deffrent people ia colour of world.
Randhir kumar
Absolutely true
Absolutely true hai sir